हिन्दी १.०
१४ सितुमबर ,अथवा हिन्दी दिवस , आज सुबह जब में टाईम्स ऑफ़इंडिया के प्रस्ट टटोल रहा था , तोह एक कही कोने में मुझे पता चला कीआज हमारे हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली अथवा हमारी मात्रभाषा हिन्दी को समरपित हिन्दी दिवस है। यह आशचर्य की बात नहीहम में से ९९% लोग इस बात से अवगत नही होंगे की आज हिन्दी दिवस है। हमारे अन्दर का भारतियेह इनताबदल चुका है की , अपनी इस पहचान को प्रस्तुत करने में शर्माता है , आखिर क्यों ? सिर्फ़ इसलिए की यह फैशननही है, यह डिस्को में नही बोली जाती, युवाओ में इसका चलन नही है या यह हमारी पेर्सोनालिटी को शीण करती है। तोह मैं आपको एक बात से अवगत करा दू कि दुनिया में जितने भी विकसित देश है वह सरे अपनी मात्र भाषा कोअपनी पहचान बनाते है, ना की किसी और की भाषा को अपनी पहचान ।
मैं इस बात के खिलाफ ऩही हूँ की दुनिया की दूसरी भाषाएँ सीखने और प्रयोग करने में कोई बुराई है लेकिन अपनीमात्र भाषा को ही श्रंभंगुर कर देने ,किसी विशिस्ट की पहचान नही , जहाँ के बांके और पूत पूरी दुनिया में विख्यातहै।
कुछ सुझाव, मैं इस उपलक्ष में जरुर देना चाहुगा जैसे क्यूँ ना हम यह प्रण ले कि जो भी हमारे देश का उत्पादन होता है उसपर हम "मेड इन इंडिया " कि मोहर कि जगह " भारतियेह उत्पाद " कि मोहर लगाए , जैसे हमारे चीनी भाईसदियो से कर रहे है।
समीकरण अगर करे तोह , बस यही कहना चाहुगा कि पहचान खोना आत्मा के अस्तित्व को खोना है , क्यों ना हमसब मिलके के हमारे अपने हिन्दी १.० , श्रेणी के उत्पादक बाजार में प्रस्तुत करे, आईये साथ मिलके शुरात करते हैकुछ अलग करने कि , कुछ नया करने कि, हमारी मात्रभाषा को नई पहचान देने की। ,